भारतीय 'जीवन-दर्शन' में जिसे 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते' कहकर सम्मानित किया, उसी जीवन दर्शन के पोषकों ने उसे अबला, कुलटा जैसे शब्दों से सम्बोधित करते हुए उसके सामाजिक और आर्थिक अधिकारों पर ही डाका नहीं डाला उसे शिक्षा, समानता, सम्मान और पोषण जैसे प्राथमिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया। नारी जीवन का शोषण भारत में 'युग' बनकर इतिहास के पन्नों पर काले अध्याय के रूप में अंकित हो गया। भारत के पुर्ननिर्माण में अपना सर्वस्व लगा देेने वाले महामानव मोहनदास करमचन्द्र 'गांधी' ने नारी समाज को इस अंध-युग से निकालने की वकालत की। गांधी जी के विचार स्त्री के सम्मान और सुरक्षा को लेकर आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे। आज नगरों से लेकर महानगरों तक स्त्री असुरक्षित हैं राजधानी दिल्ली जैसी जगहों पर भी उसे सार्वजनिक रूप से लूटा-खसोटा और अपमानित किया जा रहा है। गांधी जी कहा करते थे कि "जब तक एक भी ऐसी स्त्री मौजूद है जिसे हम अपनी लम्पटता का शिकार बनाते हैं, तब तक हम सब पुरुषों का सिर शर्म के मारे नीचा रहेगा।"
महिलाओं को 'परदे के भीतर' कैद कर देने पर भी गांधी जी आक्रोशित थें उनका मानना था कि परदे के भीतर किसी भी पवित्रता को सुरक्षित कैद रखा जा सकता है। वे कहते थे कि- "पवित्रता परदे को आड़ में रखने सेनहीं पनपती। बारह से यह लादी नहीं जा सकती। परदे की दीवार से उसकी रक्षा नहीं की जा सकती। उसे तो भीतर से ही पैदा होना होगा।"
डाॅ0 रानू शर्मा. नारी स्वतन्त्रता और गांधी जी का दृष्टिकोण. International Journal of Advanced Educational Research, Volume 2, Issue 3, 2017, Pages 97-98