अपनी सभ्यता और संस्कृति के विकास क्रम में मानव ने अपने समक्ष जिन प्रणालियों तथा मूल्यों की स्थापना की है, उनमें लोकतंत्र का स्थान निश्चय ही अतिविशिष्ट है। अपनी सम्पूर्ण विकास यात्रा के दौरान मानव के लिए उसने, स्वयं की पहचान, गरिमा और आत्मसम्मान की खोज एक अलग प्रश्न रहा है और लोकतंत्र इस प्रश्न का यथोचित उत्तर बनकर उपस्थित हुआ है- न केवल एक प्रणाली यह व्यवस्था के रूप में, बल्कि मूल्यों के रूप में भी यह मनुष्य के विवेक पर आधारित एक शासन प्रणाली भी है तथा मनुष्य के रूप में जीवन जीने की गरिमापूर्ण पद्धति भी। भारत में भी स्वतंत्रता के पश्चात लोकतंत्र को अपनाया गया लेकिन उसका राजनीतिक पक्ष मात्र ही। फिर संविधान की प्रस्तावना, नाकरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों व नीतिनिर्देशक तत्वों के माध्यम से लोकतंत्र के सामाजिक आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने का संकल्प लिया गया। इसे सम्पर्णता में देखें तो हमारे समक्ष कई मूलभूत प्रश्न उपस्थित होते हैं, जैसेः कया भारत का लोकतंत्र राजनीतिक पहलू के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक संदर्भां को अपने साथ जोड़ पाया है? क्या भारतीयों ने जीवन पद्धति के रूप में इसे स्थापित करने में सफलता पाई है? क्या भारतीय लोकतंत्र विश्व, जो कि लगातार आतंकवाद से त्रस्त है, को एक नई दिशा दिखा सकता है? इन सभी प्रश्नों के आलोक में हम भारतीय लोकतंत्र का मूल्यांकन करेंगे तथा उसकी उपलब्धियों व चुनौतियों की एक स्पष्ट तस्वीर अपने सामने रखने की कोशिश करेंगे।
डाॅ0 विद्याधर पाण्डेय. भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों का मूल्यांकन. International Journal of Advanced Educational Research, Volume 2, Issue 3, 2017, Pages 189-191