भारतीय राजनीति में बहिर्वेशन का यथार्थ एवं दलित - एक अध्ययन?
चन्द्रजीत सिंह यादव
भारतीय संविधान में समानता का अधिकार प्रत्येक नागरिक को संवैधानिक रूप से प्रदान करता है वहीं दूसरी तरफ संरचनात्मक रूप से भारतवर्ष में सदियों से क्रमबद्ध जातीय असमानता व्याप्त है। जिसका संजीता उदाहरण हिन्दू वर्ण व्यवस्था है। भारत देश को हिन्दूस्तान भी कहा जाता है, यानि यह हिन्दू प्रधान देश है। भारतीय समाज में बहुजातीय/प्रजातियाँ पायी जाती है, जिनमें महिलाएं, दलित एवं आदिवासी समुदाय हाशिये पर स्थित पाये जाते है। इन वर्गों की असमान प्रस्थिति का कारण तत्कालीन न होकर ऐतिहासिक है। उपरोक्त वर्गों में से दलित वर्गों की स्थिति अत्यंत सोचनीय है क्योंकि हिन्दू वर्ण व्यवस्था के चार वर्णों में से इन्हें सबसे निचला स्थान प्राप्त है और इन्हें अपवित्र माना जाता है। यानि ऐसा वर्ग समुदाय जिसके छूने मात्र से उच्च वर्ग का व्यक्ति स्वयं को अछूत व अस्पृश्य समझे उस जन समुदाय को दलित वर्ग कहा जाता है। संवैधानिक रूप से इन जातियों को अनुसूचित जाति कहा जाता है। इनके नाम को सरकारी अनुसूची में सूचीबद्ध किया गया है तब ही यह विभिन्न प्रकार के सकारात्मक कार्यवाही एवं संरक्षण का लाभ प्राप्त करने के योग्य होते हैं।
चन्द्रजीत सिंह यादव. भारतीय राजनीति में बहिर्वेशन का यथार्थ एवं दलित - एक अध्ययन?. International Journal of Advanced Educational Research, Volume 3, Issue 2, 2018, Pages 332-334