परिवर्तन सृष्टि का नियम है। समय के साथ-साथ समाज परिवर्तित होता रहता है। समाज की बदलती परिस्थितियाँ, समस्याएं और उनका दबाव साहित्यकार और उसकी रचनाओं को प्रभावित करता है-काव्य का विषय, स्वरूप, शिल्प, काव्य-भाषा सब में परिवर्तन होता है। अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं का साहित्य इसका साक्षी है। अंग्रेजी कवि चांसर की काव्य-भाषा और शिल्प आधुनिक अंग्रेजी कवियों टी.एस. इलियट तथा डब्ल्यू.कीट्स की काव्य-भाषा से भिन्न है, क्योंकि उनका काव्य भिन्न है। इसी प्रकार हिन्दी काव्य के आदिकाल की भाषा मध्यकालीन काव्य की भाषा से तथा प्रयोगवादी और नई कविता की भाषा अपनी पूर्ववर्ती काव्यधाराओं छायावादी-प्रगतिवादी काव्य की भाषा से भिन्न है। काव्य के विषयों, कवियों की रूचि और व्यक्तित्व, काव्य-रचना के उद्देश्य के समानान्तर काव्य की संरचना, उसकी भाषा, उसका शिल्प, उसकी शैली परिवर्तित होती रहती है। इसी सत्य को पहचान कर अंग्रेजी आलोचक ने लिखा है- "Content and expression are conterminus" तथा आचार्य शुक्ल ने कहा था ‘‘विषयों की अनेकरुपता के साथ-साथ उनके विधान का ढंग भी बदलता रहता है।
डाॅ0 नीतू शर्मा. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की काव्य भाषा और शिल्प. International Journal of Advanced Educational Research, Volume 3, Issue 3, 2018, Pages 38-40